माँ !!!
जब बीमार मैं होता था, धड़कन तेरी बड़ जाती थी !
सोती न थी रातों को, मुझको लोरियां सुनाती थी !!
गुल्लख खली करके भी, तू झूठ बोलती भरी रही !
नए कपड़े मुझे दिलाकर, तुझे फटी साड़ी में भी खुशी मिली !!
किसी बात से दुखी मैं होता था, हिम्मत तू मुझे दिलाती थी !
मैं हूँ न पगले साथ तेरे, साहस तू मुझे बधान्ति थी !!
दिल पे पत्थर रखकर तूने, मुझको अपने से दूर किया !
मैं एक दिन बड़ा इंसान बनूं, अपने को तूने चूर किया !!
तूने कभी खुद के लिए, एक रत्ती भी सोना न लिया !
जो भी कुछ था पास तेरे, उससे मुझको ही गहना बना दिया !!
तेरा छोटा सा दिल, बड़ा इतना, ये ब्रह्माण्ड भी शायद समा जाये !
न्योछावर सब कुछ करदे तू, बस बच्चों पर तेरे न आंच आये !!
दरिया से तू भिड़ती रही, खुद कटकर मेरे लिए नाँव बनी !
संकट सब खुद पर झेल लिए, तू ढाल बनी, तलवार बनी !!
माँ मुझको तू माफ़ कर देना, कभी दिल जो तेरा दुखाया हो !
मान लेना अभी भी बच्चा हूँ, बचपन में जिसने सताया हो !!
माँ जो तूने मुझकोे किया, मैं कभी न वो कर पाऊंगा !
क़र्ज़ तेरा बड़ा इतना, सात जन्म भी न चुका पाऊंगा !!
– अनुज अग्रवाल
पुणे, महाराष्ट्र