माँ हिंदी की पुकार।
माँ हिंदी की पुकार।
नहीं लिखूंगा कुछ भी, आजकुछ भी नहीं सुनाने को,
फर्क नहीं पड़ता आहों से मेरी अंधे,बहरे, गुलामो को ।
ना मातृभूमि के हो सके, ना माँ के आँचल के,
वो क्या लाज रखेंगे मेरी, जो रख न सके घर आँगन के।
अपाहिज़ है खुद ही सोच जिनकी वो क्या देंगे सहारा मुझको,
खुद ही लाज बचाना होगा फिर दुबारा मुझको ।
संस्कृति सभ्यता उठो जागो मेरे संतान,
संभालो खुद को बदल रहा है हिंदुस्तान।
सब रखवाले बने गये मतवाले ,कहीं
विलुप्त न हो जाये कदमो के निशान ।
#हिन्दी दिवस अवशेष
तेजस- एक साहित्य अभियंता ।