माँ वर्णनातीत है
माँ पर लिखना बहुत ही कठिन है, सोच नहीं पा रहा हूँ क्या लिखूँ
माँ को जमीं लिखूँ कि आसमां लिखूँ …नहीं… माँ पर कुछ ना लिखूँ…. माँ तो स्वयं शब्दसागर है,यहाँ -वहाँ -जहाँ लिखूँ, सिर्फ़ व सिर्फ़ माँ लिखूँ।
माँ,माँ,माँ…. माँ वर्णनातीत है
माँ जन्म से ही बालक का मीत है
माँ से ही जीवन है, माँ प्रथम प्रीत है
माँ से ही भूत,वर्तमान और अतीत है
माँ शब्दों में नहीं समाएगी ; माँ वर्णनातीत है।
माँ मूक बालक की व्यक्त भाषा है
माँ से शांत होती भूख-प्यास, जिज्ञासा है
माँ शिक्षक,गुरु की सर्वोत्तम परिभाषा है
माँ साथ हो तो, हार भी जीत है; माँ वर्णनातीत है।
माँ साक्षात् ईश्वर की मूरत है
माँ आद्योपांत बालक की जरूरत है
माँ की गोद में ही बालक खूबसूरत है
माँ की पुकार, जीवन का मधुर संगीत है ; माँ वर्णनातीत है।
रचनाकार
-सुरेश्वर मद्धेशिया
महाराजगंज,उत्तर-प्रदेश