माँ मुझे विश्राम दे
दिवस श्रृंखला बीत चुकी
माँ बचन निभाता आया हूँ
अब दे दो माँ विश्राम मुझे
अब दर्द नही सह पाता हूँ।
एक प्रतिज्ञा ली थी मैंने
परोपकार करता ही रहूंगा,
पर क्षद्म विक्टिमो से पीड़ित
अब और न सह मैं पाऊंगा।
नीलाम हुआ घर मेरा है
कर आबाद दूसरे का घर,
आज जरूरत आन पड़ी
मुझे सूझता नहि कोइ दर।
दुराग्रही हो चला आज मै
अपने ही बीबी बच्चों का,
अपराधबोध से पीड़ित मैं
करता गुजर बसर सबका।
पर नही शिकायत उनको है
आज भी मुझसे जानो कोई,
मेरे साथी रहे बने सब
उस परोपकार में बाटे लोई।
आज पूछने यह आया हूँ
अपने भविष्य के बारे में,
शिबि दधीचि के पग पे चलूं
या सोचूं परीवार के बारे में।
क्षमता अब वो रही नही
पैदल चल नहि पाता हूँ,
किसी और कंधे पर चलना
माँ मैं सह नहि पाता हूँ।
किसी तरह आ पाया हूँ
माँ तेरे इस पावन धाम,
इस आशा में कि पाऊंगा
निज यक्षप्रश्न का समाधान।
तेरे धाम की प्रथम शिला
माँ गवाह मेरे आने की
आदेश न जब तक पाऊंगा
जिद निर्मेष नही जाने की।
निर्मेष