माँ माँ जपते जा “राही” जब तक चलता श्वास
माँ शब्द सबसे छोटा पर वो गुणों की खान
जिसकेे सम्मुख फिके सारे वेद पुराण
माँ भक्ति को तरसे स्वयं सभी भगवान
चारो ओर देख ले “राही” कोई न माँ समान।।
माँ से मिला जन्म,नौकरी और मान सम्मान
माँ शिक्षा देती यही कभी न हो अभिमान
माँ के निस्वार्थ प्रेम की कर ले तू पहचान
खुद से भी ज्यादा “राही” रखना माँ का ध्यान।।
माँ ही है जननी सबकी अल्ला हो या राम
माँ खुश तो ईश्वर खुश झूमे चारो धाम
अपना फर्ज निभाने को बन जा तू गुलाम
माँ पे लिखता जा “राही” नित नए कलाम।।
माँ वो दिव्य ज्योति है सूर्य से तेज प्रकाश
माँ के चरण वंदन को झुक जाता आकाश
माँ का ह्रदय विशाल कोई न होत निराश
माँ माँ जपते जा “राही” जब तक चलता श्वास।।
रितेश सिंह “राही”
बलिया (ऊ•प्र•)