माँ-बाप
जो माता-पिता का सहारा न होता
जगत में कहीं कुछ हमारा न होता
ये सूरत किसी भी लायक न होती
अगर मेरी माँ ने सँवारा न होता
न जाने कहाँ डूब जाती सफ़ीना
कभी भी नज़र में किनारा न होता
न मिलता दुवाशीष मुझको पिता का
कहीं भी धरा पर गुजारा न होता
अगर माँ-पिता जी छुड़ाते न दामन
यहाँ मैं कभी बेसहारा न होता
न काजल लगाती मेरे भाल पर माँ
जहाँ में अनोखा सितारा न होता
उठाती न पीड़ा उदर में अगर माँ
कभी पाँव मैंने पसारा न होता
ये सूरत किसी भी लायक न होती
अगर मेरी माँ ने सँवारा न होता