माँ बाप हैं लाचार
**** माँ बाप हैं लाचार ****
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माँ बाप हो गए हैं लाचार,
संस्कार बिक रहे हैं बाजार।
सीने बन जाते हैं फौलाद,
औलादें नहीं करे दरकिनार।
मतभेद सामने आ रहे हैं,
मनभेद खड़ी करते दीवार।
निलय सुने से बन्द पड़े है,
ईमारतें खड़ी ऊपर मीनार।
प्प्यार बाजारू बेच रहे हैं,
अपने बन गए हैं ज्यों सुनार।
रिस्तों की कीमत आंकते हैं,
नफरत की बहने लगी बहार।
माता पिता हैं व्यथा सुनाएँ,
टूट रहे हैं किए हुए करार।
मनसीरत दिल से रो रहा है,
संताने सताने को तैयार।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)