माँ-बाप का किया सब भूल गए
जो किया उसे हम भूल गए, जो हुआ नहीं वह याद रहा,
माता की ममता भूल गए, बाप का डंडा याद रहा।।
दोस्तों की पार्टी याद रही, माँ के हाथ की रोटी भूल गए,
अंकल की कार याद रही, बाप के कंधों का झूला भूल गए।।
कपड़े-जूते फटे पुराने जो पहने वो सब दिन-रात याद रहा,
माँ-बाप ने दिन रात जो पसीना बहाया, वो भीगे कपड़े भूल गए।।
पढ़ाई करने पर जो मार लगी उस मार के घाव अभी ताजा है,
पास हुए और मिठाई मिली उस मिठाई का स्वाद भूल गए।।
जो मुकाम छुआ जीवन में उसके कर्ता-धरता हम स्वयं हुए,
जो पा न सके जीवन में, उसके जिम्मेदार माँ-बाप हुए।।
हम हँसे अपने कारण ही और रोने का कारण माँ-बाप हुए,
कष्ट मिले जब भी जीवन में, माँ-बाप की आँखों के आँसू भूल गए।।
संतान पालना प्राकृतिक नियम बना है, यह कहना कितना आसान है,
कृतज्ञता भी प्राकृतिक है हम उसको पढ़ना क्यों भूल गए।।
लेन-देन ही जीवन है यही रिश्तों का आधार हुआ,
माँ-बाप से लेना याद रहा माँ-बाप को देना भूल गए।।
prAstya…… (प्रशांत सोलंकी)