माँ बरसी आई पर तू कभी नहीं आई
माँ बरसी आई पर तु कभी नहीं आई
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कई साल बीत गए पर माँ तू नहीं आई,
हमारी तुम्हें तनिक याद भी नहीं आई,
दर दर फिरूँ देता मैं रहता हूँ दुहाई,
हम बच्चों की फरियाद सुनी नही माई।
तुम बिन सूना सुना लगता है जग सारा,
तलाश तेरी में फिरूँ दर दर मारा मारा,
खता गर हुई है तो दिल से दूर निकालो,
देकर जाओ हमें भूलने की कोई दवाई।
घर मेरे की ज्योत हुई है बुझी बुझी सी,
ताकती आँखे हो गई बूढ़ी बूढ़ी सी,
कोई तौर तरीका तो बता कर जाओ,
कैसे जियें हम तुम बिन बन के हरजाई।
तेरी मोतियों की माला अब बिखर गई,
आपस मे सब की आँखे है अखर गई,
तेरे दर्शन को सूखी नजरें हैं तरस गई,
स्वप्न में आकर जरा कभी लाड़ लड़ाई।
जिंदगी का खज़ाना सारा लूट गया है,
वात्सल्य का सहारा भी रुक गया है,
बापू भी गम में बरगद सा सूख गया है,
नीम सी शीतल छाँव तेरी दो परछाई।
मनसीरत तुम बिना हुआ आँगन टेढ़ा,
जीवन की पगडंडी का राह टेढ़ा मेढा,
तेरी माँ बरसी पर मिलकर तुझे पुकारें,
माँ बरसी आई पर तू कभी नहीं आई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)