माँ (खड़ी हूँ मैं बुलंदी पर मगर आधार तुम हो माँ)
खड़ी हूँ मैं बुलंदी पर मगर आधार तुम हो माँ
मेरी पूरी कहानी का प्रमुख किरदार तुम हो माँ
मुसीबत से बचाती है तुम्हारी हर दुआ मुझको
मेरा मन्दिर मेरी पूजा मेरा संसार तुम हो माँ
तुम्हीं ने टेढ़ी मेढ़ी राहों पे भी चलना सिखलाया
मेरा हर स्वप्न करना चाहती साकार तुम हो माँ
गलत क्या है सही क्या है मुझे पल पल बताती हो
मेरी इस ज़िंदगी को देती भी आकार तुम हो माँ
थपेड़े वक़्त के मुझको तुम्हीं सहना सिखाती हो
पकड़ कर हाथ मुश्किल से कराती पार तुम हो माँ
कोई भी हो नहीं सकता है तुम जैसा जमाने में
भुलाया जा नहीं सकता वो पहला प्यार तुम हो माँ
गले लग कर तुम्हारे ‘अर्चना’ गम भूल जाती है
मुझे रब से मिला अनमोल सा उपहार तुम हो माँ
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद