माँ पर दोहे
माँ पर दोहे
सुशील शर्मा
जीवन तपती धूप है, तू शीतल सी धार।
थपकी लोरी में छुपा, माँ का अनगढ़ प्यार।।
तुझ से ही सांसे मिलीं, तुझ से जीवन गीत।
तुझ से ही रिश्ते जुड़े तू पावन सी प्रीति।।
तेरी लोरी में बसा, सुर संगम आभास।
तेरे क़दमों में बिछा हम सबका आकाश।।
सारा दुख तूने सहा, बीने सारे शूल।
अपने बच्चों के लिए, बिखराये तू फूल।।
माँ तुलसी का रोपना माँ शीतल जल धार।
माँ से बढ़ कर कौन है इतना दे जो प्यार।।
माँ का रिश्ता हर जनम, सब रिश्तों की शान।
बिन तेरे सब घर लगें, सूने से श्मशान।।
माँ ममता की महक है ,माँ है सूर्य प्रकाश।
माँ हरियाली सी लगे, माँ जीवन की आस।.
माँ के चरणों में बसे ,गीता और कुरान।
माँ की जो पूजन करे, उसे मिलें भगवान।।
मैं अनगढ़ मूरत भला, मुझे कहाँ है भान।
संस्कार माँ से मिले, बना दिया विद्वान।।
माँ है सरिता नेह की, त्याग समर्पण नाम।
माता के आशीष से, बनते बिगड़े काम।।