माँ देती दुआएं हैं
ग़ज़ल —-
सुहाना है ये मौसम हर तरफ फैली लताएं हैं।
ये बेलें हैं,घनी जुल्फें या बस तेरी अदायें हैं।
कभी आकर यूँ ही जो लिक्खे थे किस्से मुहब्बत के।
कभी खुद हम ही पढ़ते हैं कभी सबको सुनाये हैं।।
सिसकता छोड़ के तनहा जो इक दिन बढ़ गए आगे।
उसी इक मोड़ पर अब भी सुनी जाती सदाएं हैं।।
हमारी खत्म होती उर्वरा के हम ही कातिल हैं।
मगर चुपचाप रहकर भी धरा देती सजाएँ हैं।।
खफ़ा होती नहीं माँ चाहे कितना भी सता लें हम।
भुलाकर सारे अश्कों को वो बस देती दुआएं हैं।
आरती लोहनी