माँ तो घर मे प्रेम की चादर है
माँ तो घर मे प्रेम की चादर है
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अंबर में चमकते तारे है,
माँ को बच्चे बहुत प्यारे हैं।
फूल बागों में खूब में खिले,
किस्मत से माँ का प्यार मिले।
नदियों में चलता पानी है,
माँ तो सदा देती कुर्बानी है।
बरसात संग आई अंधेरी है,
माँ के दर पर कभी न देरी है।
रुत प्यार की आई हुई है,
माँ के पैरों में जन्नत समाई है।
धुन अनुराग की सुनाई है।
माँ के आँचल में ही दवाई है।
मनसीरत तो बहता सागर है,
माँ तो घर में प्रेम की चादर है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)