माँ तो ऐसी ही होती है ….. (माँ का बलिदान ) {कविता }
अपनी बगिया के फूलों को ,
रक्त से अपने सींचती है ।
उनकी मुस्कराहट के लिए ,
अपने अश्क भी पी जाती है ।
चैन से वोह सो सके ,
इसीलिए खुद रात भर जागती है ।
उसके तन को ढकने हेतु ,
खुद चीथड़े में रहती है ।
” मुझे भूख नहीं है ” कहकर ,
अपने हिस्से क भोजन भी खिला देती है।
खुद संघर्ष की आग में जलेगी मगर ,
अपने फूलों पर आंच भी आने न देती है।
अपनी ममता भरी आँचल की छाया में छुपाकर ,
ज़माने भर के ग़मों से बचाए रखती है ।
माँ के त्याग /बलिदान, प्रेम की कोई सीमा नहीं ,
ईश्वर के सामान जो महान होती है,
माँ है जिसका नाम दोस्तों !,
माँ तो ऐसी ही होती है ।
द्वारा – ओनिका सेतिया ‘अनु’
फरीदाबाद (हरियाणा)