माँ तुम याद आती है
#दिनांक:-12/5/2024
#शीर्षक:-मॉं , तुम याद आती हो।
हाँ माँ तुम बहुत याद आती हो,
जब खुशी की बात होती है।
जब दर्द की सौगात मिलती है,
जब सासू माँ,माँ नहीं बनती है।
जब बर्तन बेमतलब खनकते हैं,
जब पति परमेश्वर घर से नहीं निकलते,
गाली से दिन की शुरुआत हैं करते ।
बिन गलती के गाल चाटे है खाता,_
आगे बढ़ने की होड में मात खाती ।
प्रेम – प्रेम नहीं संघर्ष बन जाता है ।
कड़वी बातें रातभर हैं जगातीं,
सोखता खारा नीर ,
कहूँ किससे अपनी पीर ,
लगा था मैं रहूंगी सर आँखों पर,
साँसें भी मधुरिम चढेंगी साँसों पर,
पर…….
कौन है वह ?जिसने यह नियम बनाया ,
पच्चीस साल को एक पल में भूलवाया।
उम्मीद लेकर आना चाहिए कहाँ,
नाउम्मीद परिणाम भावना को थमाया।
तब बहुत याद आती हो माँ,
दुख दर्द बांटना चाहती हूँ ।
पर….
रोते रोते जब खाना खाती हूँ।
पर…..
तेरे गले लग फिर से मासूम कहलाना चाहती हूँ ।
पर…..
सिर तेरी गोद में ही रख सोना चाहती हूँ।
पर…..
तेरे सिवा कोई नहीं समझता मुझे।
पर…….
फिर कल्पनाओं में तुझे बुलाती हूँ।
पर…. कल्पनाओं में भी लिपट नहीं पाती हूँ ,
बस तुमको यादों में याद कर गहरी नींद सो जाती हूँ।
(स्वरचित, मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित है)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई