@माँ! तुम नहीं हो@
दरिद्रता-दीन-दुर्दिन बीत गये सारे,
पर माँ! तुम नहीं हो,
मिलती भरपेट रोटियाँ साँझ-सकारे
पर माँ! तुम नहीं हो!
करते हैं प्यार अपार ये संसार वाले,
पर माँ! तुम नहीं हो,
याद हैं मुझे अनचाहे कहकहे प्यारे,
पर माँ! तुम नहीं हो!
सिखाते हैं संस्कारपूर्ण आचार सारे,
पर माँ! तुम नहीं हो,
ममता है प्रेम भी बहुत करते हैं सारे,
पर माँ! तुम नहीं हो!
मधुर मुस्कान, कुटिल-क्रोध भी है,
पर माँ! तुम नहीं हो,
छाया है, धूप है, शीतल-सौम्य रूप है,
पर माँ! तुम नहीं हो!
वन-पर्वत, नदि-झरने व्योम भी है,
पर माँ! तुम नहीं हो!
दिवाकर, ‘मयंक’ यहाँ हैं सब तारे,
पर माँ! तुम नहीं हो,
अथक कहे नयन निरन्तर निहारे,
पर माँ! तुम नहीं हो!
के.आर.परमाल ‘मयंक’