माँ तुम कैसी हो?
माँ तु कैसी हो?
जोर से हँसने पर धमकाती ह़
गुमसुम हो जाने पर हँसाती हो
कल्पना के घोड़े पर दौड़ाती हो
यथार्थ के जंगल से ड़राती हो।।
माँ तुम कैसी हो?
मोम सी कोमल कभी, जल सी पारदर्शी
कभी पत्थर शिला सीहै जाती हो
सखी बध कभी हृदय पटल खोलती हो
कभी निवड़ अहिल्या सी बन जाती हो।।
माँ तुम कैसी हो?
उमड़ती नदी सी कहीं स्नेहिल धारा
कभी सहमी भयभीत नारी लगती हो
अनगढ़ कदमों से नाचती कभी
सधे पैरौ़ से कभी लीक राह चलती है।।
माँ तुम कैसी हो?