“माँ तुझसा मुक़द्दस कोई नहीं”
सारी दुनियां हो जाए खफ़ा फ़िर भी तेरी रहमत होती है
माँ तुझसा मुक़द्दस कोई नहीं तेरे क़दमों में जन्नत होती है
माँ तू मेरे जीने का आधार है, तेरी ममता मेरा संसार है
मैं क्या तेरी ख़िदमत करूँ बता तुझसे ही बरक़त होती है
मैं अक़्सर सोचता हूँ ,सोचकर फ़िर रोने लगता हूँ बहुत
चुका पाऊँगा या नहीं दूध का कर्ज़,दिल में हरक़त होती है
तू रूठ जाए ग़र कभी लबों पर कभी बद्दुआ नहीं रखती
मुहब्बत का दरिया है तू, तेरे ग़ुस्से में भी मुहब्बत होती है
सबकी फ़िक्र किया करती है, सबको खिलाकर सोती है
ग़ैर सारे खाने फ़ीके तेरे बने बासी में भी लज़्ज़त होती है
औलाद का दर्द ग़वारा नहीं तुझे,हर दर्द पर तड़प उठती है
लौटकर ना आए वक़्त पर औलाद तेरी तुझे दहशत होती है
हर मुसीबत में याद आता है लफ्ज़-ए-माँ तेरी फ़ज़ल मुझें
ये सच है तेरा हाथ हो सर पर, तो हर मैदां में नुसर्त होती है
___अजय “अग्यार