माँ तस्वीर नहीं, माँ तक़दीर है…
माँ तस्वीर नहीं
माँ तक़दीर है
माँ क़िस्मत की
हर पहलू की लकीर है,
माँ दहलीज़ की
हर सख़्त पहेली है
माँ ही आँगन की
सच्ची सहेली है।
माँ क़रीब की
वह मंज़िल है
जहां से दिखती
दूर की हर दुनिया
बड़ी ही अच्छी है।
माँ हर दर्द की
मीठी मुस्कान है
माँ, पिता के
हर साहस की पहचान है,
माँ ही जीवन की
अटल, अटूट विश्वास है।
माँ सरल, सत्य, सभ्यता
व संस्कृति की, अलौकिक
एहसास है…