माँ — जीवन का व्याकरण
है हर भाषा के लिए,
निर्धारित एक व्याकरण
क्या होता है…. ?
फिर आखिर ,
जिंदगी की भाषा का व्याकरण….
स्वयं की संज्ञा में,कौनसी भरें विशेषता ,
उसके लिए आखिर कौनसी करें क्रिया ,
खाली स्थान ,कैसे हो रचा… ?
कब दे अल्प विराम या किसी सोच को विराम ?
जब हो सामना प्रश्न चिन्हों से,
क़ैसे सम्बोधित करें उत्तर ,
किसे दें संधि कितनी ,कहाँ हो योजक .. ?
कहाँ लिखे जाते इस व्याकरण के नियम
कौन है जो सिखाता परिवर्ती जीवन के,
कुछ स्थिर ,कुछ बदलते नियम…
उत्तर में पाती हूँ…
महज एक अक्षर का एक शब्द
माँ …..! हाँ…. वो है माँ
जिसमें है समाहित
सम्पूर्ण जीवन का व्याकरण
सारिका आशुतोष मूंदड़ा , पुणे