माँ गौरी से लगी लगन
माँ गौरी से लगी लगन
माँ की छांह रहूँ भवन
माँ ही मुझे संवारेगी
माँ ही राह दिखाएगी
जब खोया अपने को
माँ ने पाना है सिखाया
भीड़ में भूली खुद को
माँ ने स्मृत है कराया
आज भी भटकाव में
माँ ही आ समझाएगी
चाल चलन दुनियां का
उल्टा पुल्टा दुनियां का
मक्कारी दुश्वारियां जहां की
कथनी करनी यहाँ की
जान न पाई मैं अब तक
माँ ही आ कर बताएगी
छल प्रपंच लूट खसोट
अन्तस में छिपी हुई चोट
बड़बोले सृष्टि को बताई
बस अपने में ही इतराई
माँ ही केवल जान पाई
उस माँ ने ही की भरपाई