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14 May 2023 · 1 min read

माँ (गीतिका)

तिनका-तिनका अरमानों की सेज सजाये बैठी माँ ।
डांट डपट सुनकर भी कितनी आस लगाये बैठी माँ ।।

आँखों में सपनों का सागर दिल में ममता की गंगा ;
चुपके-चुपके सहमी-सहमी आँख चुराए बैठी माँ ।

खुद की खुशियाँ गिरवी रखकर बेटी की खुशियाँ लाई ;
आज किसी कोने में सारे कर्ज भुलाये बैठी माँ ।

ऊँगली पकड़-पकड़ कर बाँहें गोदी लेकर घूमी जो ;
इन पथरीली राहों पर अब पाँव सुजाये बैठी माँ ।

जिस बेटे के लिए जमाने भर की खुशियाँ ठुकरायीं ;
आज उसी बेटे के कारण ठोकर खाए बैठी माँ ।

काँप-काँप कर रात-रात भर स्वेटर बुनती बेटे का ;
आज फटी साड़ी में अपनी लाज छुपाए बैठी माँ ।

धरती अम्बर तिहूँ लोक में परम पूज्य देवी जैसी ;
देवों से भी उच्च शिखर पर धाक जमाए बैठी माँ ।

राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

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