माँ (गीतिका)
तिनका-तिनका अरमानों की सेज सजाये बैठी माँ ।
डांट डपट सुनकर भी कितनी आस लगाये बैठी माँ ।।
आँखों में सपनों का सागर दिल में ममता की गंगा ;
चुपके-चुपके सहमी-सहमी आँख चुराए बैठी माँ ।
खुद की खुशियाँ गिरवी रखकर बेटी की खुशियाँ लाई ;
आज किसी कोने में सारे कर्ज भुलाये बैठी माँ ।
ऊँगली पकड़-पकड़ कर बाँहें गोदी लेकर घूमी जो ;
इन पथरीली राहों पर अब पाँव सुजाये बैठी माँ ।
जिस बेटे के लिए जमाने भर की खुशियाँ ठुकरायीं ;
आज उसी बेटे के कारण ठोकर खाए बैठी माँ ।
काँप-काँप कर रात-रात भर स्वेटर बुनती बेटे का ;
आज फटी साड़ी में अपनी लाज छुपाए बैठी माँ ।
धरती अम्बर तिहूँ लोक में परम पूज्य देवी जैसी ;
देवों से भी उच्च शिखर पर धाक जमाए बैठी माँ ।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’