“माँ कृपालिनी”
माँगता आशीष माँ , मानव उद्धार के लिए।
कृपा करो कृपालिनी , सुंदर संसार के लिए।।
प्रफुल्लित हो हर मन, उपकार ऐसा कीजिए ।
मानव, नव रूप भर, माँ नव सभी को कीजिए।।
विजयी पताका द्वार तेरे, आज मैं लगाऊँगा।
माँ रक्ष भक्तों की करो , शीश मैं नवाऊँगा।।
हर रूप का माँ तेरे , हर रूप पर हो असर ।
हर, हरि से बंधा रहे, भाव दे तू इस कदर ।।
अंकुरण तू ऐसा दे , बस प्रेम का उद् गार हो ।
प्रेम फूले, प्रेम फले , बस प्रेम का संसार हो ।।
अंत विनय मेरी सुन , “जय” का तू जयकार दे ।
जग बनाए एक ही माँ , सबको यह विचार दे ।।
संतोष बरमैया “जय”
कोदझिरी, कुरई ,सिवनी, म.प्र.