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27 Nov 2018 · 1 min read

माँ की स्मृति में…

जिस आँगन में था मैं छोटे से बड़ा हुआ
जिस आँचल में पल-बढ़ कर जवां हुआ।
जिस माँ की गोदी में सर रख कर सोया
जिसकी लोरी सुन कर सपनों में खोया।
हर-पल हर-क्षण मेरी आँखों के आगे
याद बहुत आते हैं वो दिन भागे-भागे।
चूल्हे-चौके में जब माँ बैठी रहती थी
धुएँ के बादल में आँखें भीगी रहती थी।
उन पलकों से आँसू मोती बन बहते थे
छोटे थे हम गिल्ली-डंडा खेला करते थे।
जब हुए बड़े और हम कॉलेज जा पहुँचे थे
माँ की आँखों मे साये दर्द के छाए रहते थे।
डॉक्टर-हक़ीम फैल हुए जब मर्ज बढ़ा था
ऑपरेशन पर पता चला माँ को कैंसर हुआ था।
जी भर-भर के मैं इतना उस दिन रोया था
पत्थर-दिल क्यों हो गया कोई जान न पाया था।
अब बिन माँ के हर पल माँ के संग रहता हूँ
उन भीगी पलकों का मोती सा सपना हूँ।
कहीं ढलक ना जाऊँ बंद आँखों में रहता हूँ
खोज़ न मुझको पाओगे ओझल सबसे रहता हूँ।

डॉ. श्याम सुंदर पारीक
किशनगढ़ (जिला- अजमेर)
राजस्थान

4 Likes · 20 Comments · 1000 Views
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