माँ की याद – आँचल की ओट नहीं मिलती
माँ की याद
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मिलता है बहुत कुछ आज नए जमाने में
फकत इस दिल को तसल्ली नहीं मिलती !
पेट तो जैसे तैसे भर लेता हूँ हर रोज़ मगर,
माँ तेरे सख्त हाथों की नरम रोटियाँ नहीं मिलती !!
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तरकारियाँ तो असीम रखी होती है रसोईखाने में
मगर अब वो सिल-बट्टे की चटनी नहीं मिलती !
जब से छोडा घर-गाँव, शहर में चला आया हूँ मैं
रुमाल बंधी, खेत की मेढ़ रखी, रोटी नही मिलती !!
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अक्सर करता हूँ सैर पाँच सितारा होटलों की
दिन मे स्वाद भी बहुत से चख लिया करता हूँ
तब याद आता है तेरे हाथों बना लज़ीज़ खाना
जिसे खाये बिना इस पेट की भूख नही मिटती !!
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सब कुछ है मेरे पास फिर भी कंगला लगता हूँ
जब तक तेरे आशीषो की दौलत नहीं मिलती !
जरूर कुछ तो बात है माँ तेरे हाथों के जादू में,
हर पल इन्हें छूने की दिल से चाहत नहीं मिटती !!
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जब कभी भी करता हूँ याद बीते हुए बचपन को,
सोचता हूँ वो फुर्सत की घड़ियाँ क्यूँ नही मिलती,
रों उठता हूँ फफक-फफक कर जब भी अकेले में,
तब मुँह छुपाने को तेरे आँचल की ओट नहीं मिलती !!
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स्वरचित : – डी. के. निवातिया