माँ की यादें…
माँ की यादें…
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क्यूँ,रुख़सत हुई, माँ “तेरी यादें ,
यादों में फिर से समाओ ना।
दिल करता रो-रोकर फरियादें ,
माँ,पास फिर से तो आओ ना…
बीता पल उन झिलमिल यादों का ,
सुकोमल,सरल,सहज बचपन था।
साज छेड़ो सुमधुर तरानों का ,
कोई लोरी फिर वही सुनाओ ना…
हठीपन मेरा, तेरा वो झुठा दिलासा ,
बगिये के पेड़ों का,अजूबा सा किस्सा।
बड़ी मुद्दत हुई,कर्ण सुनने को है प्यासा ,
वही किस्से, फिर से तुम सुनाओ ना…
रूमानियत का सफर बहुत प्यारा ,
रुहानी था रिश्ता,माँ आंचल तेरा ।
निस्तब्ध मन, हुआ अब अँधियारा ,
दिल को और न अब,तड़पाओ ना…
गुमसुम है जिंदगी,खामोशी अधरों पे ,
ख्वाहिशें देखो, कैसे थम सी गई है।
रख दूँ मैं अपना सर,माँ तेरी गोदी पे ,
कभी सपनों में,फिर से तुम आ जाओ ना…
कैसी हो माँ,अब कहाँ तुम हो ,
ग़म में तुम चुपके से रो लेती ।
खुशी में भी अपना आँचल भिगोती ,
कुछ बातें अपनी भी,माँ तुम बताओ ना…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २३ /११/२०२२
मार्गशीर्ष ,कृष्ण पक्ष,चतुर्दशी,बुधवार
विक्रम संवत २०७९
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