माँ की ममता की छांव
जब भी किसी ने मुझे सताया,
माँ ने मुझको गले लगाया।
जब भी दुखों की धूप से झुलसा,
माँ ने ममता का छत्र लगाया।
कभी सिर दर्द से हुआ परेशां,
माँ ने गोदी में रख सिर मेरा दबाया।
जब भी लगी भूख मुझको,
माँ ने अपने हाथों से मुझे खिलाया।
जब भी ज़माने ने रुलाया मुझको,
मां ने मुझको धीर बंधाया।
जब से गई है पलटकर न देखा,
सपनों में भी मुझको दर्शन न कराया।
मेरी कृतघ्नता का दिया दंड,
मैं तुझको भुला, तूने मुझे भुलाया।
जयन्ती प्रसाद शर्मा