माँ की ममता का मोल
सुनो मेरी कविता आज ,,
लरज्जति अम्मा की आवाज ।
बोलो मुझसे आप कहिए
मांगे बेटे से दस मात्र रूपये ।
सुनकर हो गया बेटा हैरान ,,
दस रुपये का क्या है मान ।
आज के जमाने में क्या सस्ता ,,,
खाना पीना,दवा ,फल फूल कपड़ा लता ।।
बोला अम्मा लाकर देता हूं फिर भी यह जब ,,
दस रुपये में क्यों है चुप तब।
बोली देना है तो दे दे,,
नही तो फिर रहने दे ।।
दस रुपए बेटे ने दिए ,,
और गांठ पल्लू में बांध दिये।
एक माह बड़ी मुश्किल से बुढ़िया जी पाई ,,
ससुरालं से इकलौती बेटी आई।
देखकर अपने आप खोने लगी,,
जोर जोर से वो रोने लगी।
बोली अम्मा ,,
घर गृहस्थी के झंझट में आई,,
बाते भी तुमसे जी भरकर नही करपाई ।।
इतने में ही काम वाली मैना आई ,,
अम्मा की पल्लू पर नजर जाई।
बोली ,,
रखे दस रूपये पल्लू के गांठ में ,,
लेनी थी बेटी की लिए चूड़ियां ठाठ में ।
तय कर सकता जमाना धन का मोल,,
किसने जाना यह ममता का मोल ।।
प्रवीण की कलम भी उठी
दुनिया ममता से क्यों रूठी ।
✍✍प्रवीण शर्मा ताल
जिला रतलाम
तहसील ताल
टी एल एम् ग्रुप संचालक 1 ,2 व 3
आर एस के भोपाल