माँ की थपकियाँ….
माँ की थपकियाँ बड़ा सुकून देती हैं मुझे,
उसकी लोरी से आँखों में मीठी सी नींद उग जाती है ।
चेहरा देख मेरा मानो अंतर्मन भी पढ़ लेती है,
इतना सारा ज्ञान का भंडार माँ कहाँ से लाती है।
देख नादानियाँ,शैतानियां मेरी मंद-मंद मुस्कुराती है,
कुछ तबियत बिगड़े जो मेरी चिंता में पड़ जाती है।
माँ घर में होती तो लगता घर भी घर जैसा है,
माँ नहीं तो घर भी घर जैसा लगता कहाँ है ।
गर देते भगवान मेरी माँ को ये हक़ उसके बस में,
तो खुशियां ही खुशियां आती सिर्फ मेरे हिस्से में।
दुःख को तो मेरी माँ पल में ही मिटा देती है,
उसकी बातें तो मेरी समझ नहीं आती थी पहले।
पर अब बातों के साथ माँ की हिम्मत से भी हैरानी है,
चुप,शांत दिखने वाली मेरी माँ सबसे मेरे लिए लड़ जाती है ।
माँ की महानता को शब्दों में कैसे बयां करूँ,
रिश्ते ढेर सारे पर ऐसा ममता भरा कोई रिश्ता नहीं है।
पर आज मैं दुआओं में तुमको हमेशा के लिए मांगती हूँ,
पूरी कर दो भगवान बस इतनी सी मेरी मुराद है।
माँ की थपकियाँ बड़ा सुकून देती हैं मुझे,
उसकी लोरी से मेरी आँखों में मीठी सी नींद उग जाती है ।
स्मिता सक्सेना
बैंगलौर(कर्नाटक)
स्वरचित(मौलिक रचना)