माँँ
माँ
शब्द नहीं शब्द कोश है माँ।
प्रेम नहीं प्रेम स्त्रोत है माँ।
ममता बूंद नहीं सागर है माँ।
हर दर्द का मरहम है माँ।
धधकती धूप मेंं छाँव है माँ।
अंधेरे मेंं जैसे चिराग है माँ।
सूखे में घनघोर वृष्टि है माँ।
रगों मेंं बहती शक्ति है माँ।
प्रेम का सच्चा पर्याय है माँ।
बिन कहे दर्द का अहसास है माँ।
दुख में कान्धा सुख का लिबास है माँ।
हाथों की रोटी की मिठास है माँ।
संतान के दुःख मेंं अश्रुधार है माँ।
प्रिय अहित मेंं दुर्गा अवतार है माँ।
माँ गंगा है माँ यमुना है माँ सरस्वती है।
माँ वह धार है जिसमें प्रेम प्रसार है।
-कुलदीप विश्वकर्मा
शाहजहाँँपुर, उत्तर प्रदेश