!!~महफ़िल सुनी थी,तेरे बिन~!!
महफ़िल सुनी सी थी अब तक
तेरे बिन
तू चला आया यहाँ,
तो गुल खिल गए
कब से तरसता है मन,
तेरे मिलन के लिए
तू आया तो,
अब जाकर मन हुआ प्रफुल्ल !!
बगीया में माली
अकेला क्या करे
जब फल फूल न हों
तो किस के लिए मरे
जी जाता है देख कर
वो हर दम,
जब हर कली पर
खिलता हुआ देखता है गुलशन !!
मेरे मन की बगिया
भी तेरे बिन न संवर पाएगी
तेरी सांस का साथ न होगा
तो मेरा विचलित होगा मन
आजा और खिला जा
मेरे जीवन का तू, ये गुलशन
अजीत कुमार तलवार
मेरठ