महोब्बत का खेल
बाल नहीं खुले तो जुल्फ कह गयी।
होंठ नहीं खुले खामोशी कह गयी।।
दुपटे मे फँसी उँगलीया कह गयी।
लफ्ज उल्जे सिसकियां कह गयी।।
खामोशी पर शहर में चर्चा हो गयी।
दिल के धड़कने की कहानी हो गयी।।
हसीन शाम मे हम शिकारी हो गए।
हुस्न देख कर उसके पुजारी हो गए।।
महोब्बत के खेल में खिलाडी हों गए।
गुगट हटाया तो हम अनाड़ी हो गए।।
उन नशीली निगाहों के हम आदी हो गए।
हुस्न के हाथों लूटे हम तो भिखारी हो गए।।
अनिल चौबिसा चित्तौड़गढ़
9829246588