महुआ फूल की गाथा
गोंड समाज के आराध्य पेन (ईश्वर) पारी कुपार लिंगों ने जब पहली बार प्रकृति शक्ति की पूजा अर्चना कर रहे थे । तब उन्होंने सभी गांव के भूमकाओ (मुखियाओं) को प्रकृति शक्ति की पूजा पाठ की बारीकियां, नियम, प्रक्रिया इत्यादि को समझाने के लिए बुलाया ताकि आने वाली पीढ़ी पूजा पाठ की विधियों को ना भूले ।
पेन कुपार लिंगों ने सभी भूमकाओं से ऐसा फूल लाने को कहा कि ऐसा फूल पूजा पाठ के लिए लाना कि वो फूल जल्दी मुरझाए ना उसकी ताजगी और महक अथवा खुशबू लंबे समय तक बरकरार रहे और याद रखना कि उसे प्रकृति से प्राप्त करना है उसे तोड़ना नहीं है । स्वयं प्रकृति तुम्हे अर्पण करे ऐसा फूल लेकर आओ तो हमारी पूजा सफल होगी ।
अब सारे भुमका लोग सोच में पड़ गए सभी जंगल की ओर बताए अनुसार फूल लाने को निकल पड़े । रास्ते में उन्हें कई प्रकार के फूल मिले पर वो फूल कुछ समय बाद मुरझा जाता और उसकी महक भी चली जाती तथा उसे पौधे से तोड़ना पड़ता था पौधा स्वयं उन्हे फूल प्रदान नही कर रही थी ।
अंततः बहुत समय बाद घूमने फिरने तलाश करने के बाद उन्हें ऐसा पेड़ दिखा जो बरबस ही उन्हे अपनी ओर आकर्षित कर रही थी, उस पेड़ के कूचो पर भर भर कर हल्के पीले पीले रंग के फूल लगे हुए थे और मंद मंद गति से एक एक, दो दो फूल नीचे ऐसे गिर रहे थे जैसे कोमल रूप में हीरे मोतियों की बरसात हो रही हो और जैसे पहली बरसात गिरने के बाद मिट्टी से मधुर सोंधी सोंधी खुशबू आती है ठीक उसी तरह इन गिरते हुए फूलो से एक नायाब महक अपनी ओर खींच रही थी । ये गिरते हुए फूल उन्हें मानो ये कह रही हो कि आओ भुमकाओ हमे उठाकर पेन शक्ति के चरणो में ले जाकर अर्पित करके हमे धन्य कर दो ।
फूलो को पूजा स्थल पर लाया गया इन फूलो को देखकर पेन कुपार लिंगों बेहद खुश हुए । उन्होंने जो तर्क दिए थे बिल्कुल उस पर ये फूल खरे उतरे ।
इसलिए गोंड समाज में महुआ फूल को इसके महत्त्वता और विशेषता के कारण इसे बहुत ही पवित्र दर्जा दिया गया । इसीलिए पेन कुपार लिंगों ने भी कहा था कि हर धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, वैवाहिक तथा पारिवारिक आयोजनों तीज त्योहारों में इसे चढ़ाना है । लेकिन हमारे कुछ भूमकाओ को सुनाई दिया कि सड़ाना है । तब से ही ये गलतफहमी के चलते समाज में महुए को सड़ाकर उससे जो द्रव्य निकला उसे पेन के समक्ष चढ़ाना प्रारंभ किया । इसी तरह समय बीतता गया कुछ भूमकाओ ने तर्क दिया की हमारे भगवान भी तो ये पीते है क्यों न हम भी एक बार चख ले । फिर क्या था उन्हें वो द्रव्य बहुत अच्छा लगा । उसका जो प्लीजेंट अथवा सुहावना स्वाद और महक उन्हे बहुत पसंद आई जब से मानव भी महुवे से बने दारु का सेवन करने लगा । सिर्फ एक गलतफहमी के कारण ।