महाभारत का संदर्भ!कोरोना से जंग !!
महाभारत का युद्ध,जो शताब्दियों पूर्व हुआ था,
जिस युद्ध में,दुश्मन भी जाना- पहचाना था!
और दुश्मनी की चाहत भी स्पष्ट थी पता,
युद्ध जो अधिकार और अंहकार के मध्य था!
एक ओर वह थे,जो पांच गांव पर भी मानने को थे तैयार,
दूसरी ओर वह भी था, जो एक इंच देने को न था तैयार!
यहाँ दुश्मन आमने सामने थे साकार !
जहाँ एक ओर धर्म की लड़ाई थी,,
वहीं दूसरी ओर धूरर्ता ही समाई थी!
यहाँ एक ओर मोर मुकुट धारी,श्री कृष्णा कहलाते थे,
वहीं दूसरी ओर,एक फौज थी, जो महारथी कहाते थे!
(भीष्म पितामह,गुरू दौर्ण-कृपा चार्य,अंगराज कर्ण,स्वयं दुर्योधन)
एक ओर मर्यादा की अनुपालना थी प्रबल,
वहीं दूसरी ओर, जीत के लिए था छल-बल!
यहाँ एक ओर,विश्वास का आभामंडल था विराजमान,
वहीं दूसरी ओर, संशय का घनघोर संकट था! भरोसे का नही था नामोनिसान!! एक ओर कर्म प्रधान का ग्यान था,
वहीं दूसरी ओर, अभिमान व अग्यान था!
आज की जंग, कोरोना से है !
जिसके स्वरूप का भी पता नहीं?
वह दुश्मन है यह तो पता है, किन्तु क्यों है इसका आभास नहीं!
वह कहाँ से आया है, यह भी ग्यात है सभी को,
पर उसके आने का कारण क्या है?यह भी पता नहीं किसी को!
यह एक विषाणु ही नही,इससे भी आगे बढ़कर कुछ है,
शायद यह अपनी सर्वोच्चता का अभिमान है?
जिसने इसे पनपाया, उसके रहस्य का प्रणाम है!
आज पुरा विश्व,उसके कुटिल प्रयास से हलकान है!
चारों ओर मृत्यु का हाहा कार है, पर दुश्मन का नही कोई उपचार है!
जहाँ सब जुटे हों,उससे निजात पाने को,
नही सूझ रहा है, कोई उपाय इससे पार पाने को!
युद्ध के सिपाहः शालारों का तो यह कहना है,
वह हम तक न पंहुच पाए,इसलिए घर पर ही रहना है!
यह युद्ध है अदृश्य शत्रु के साथ,
निकट न आएं किसी के पास!
यह छापा मार लड़ाई है,
यहाँ छिपे रहने में ही भलाई है!
तो आओ संकल्प साध लें,
स्वयं को घर पर ही बांध लें!
इसे यूँ ही भटक जाने दें,
और थक-हार कर मर जाने दें!
जब कोई मिलेगा नहीं तो! यह किसे डसेगा,
यह मरेगा -मरेगा और जरुर मरेगा!
बस हमें ही धैर्य धारण करना है,
स्वयं को,परिवार को,मित्रों को यह समझाना है,
भटके हुए ,दीन -दुखियों को, जो जहाँ कहीं भी हैं,
उन्हें सहायता पहुँचाना है!,
उनकी विकलता को समझना व. उन्हें समझाना है!
भावनाओं में बह कर कोई गलत काम नही करने देना. है!
वह महाभारत युद्ध का अवसर था ! तो भारत तक ही सीमित था !
आज की जंग, अखण्ड भू धरा पर लडनी है,
जहाँ के विचार-धारणा,परिस्थितियाँ,सब भिन्न भिन्न हैं!
सिवाय शत्रु के ,सब पृथक पृथक परिवेश हैं!
सब पर संकट है बड़ा विकट,
पूरा संसार अपने अस्तित्व के लिए कर रहा है संघर्ष,
जाने कब पा सकेगा, वह अपना उत्कर्ष!
हाँ, भौतिकवाद की दौड़ में हमने सब कुछ भुला दिया था,
जिसे हमारे पूर्वजों ने जीने का आधार बनाया था!
थोड़े में ही संतोष, सादगी,त्याग-तपस्या का आत्म बल,
नही की थी सुविधाओं की कामना,कमाया था नैतिक बल!
तब स्वार्थी जीवन नहीं,अपितु प्रमार्थ के लिए जिया जाता था,
आज हम अपने स्वार्थ में सिकूडे हुए हैं,
दूसरे के लिए हमारे दिल-दिमाग में,कोई स्थान नहीं रहा !
बस भागे जा रहे हैं, अंधाधुँध उस दौड़ में,,
जिसका लक्ष्य भी पता नहीं है हमें!
वही तो परिलक्षित हो रहा है, आजकल,
भूख है, डर है,विचलित हैंं,विकल हैं!
एक ठिकाने को छोड़ कर जा रहे हैं अपने घर पर,
नही जानते हैं कि वहाँ पर भी संशय है बरकरार!
इन्हें लगता है घर पर पनाह मिलेगी,
पर शायद ही वहाँ पर उन्हें कोई हमदर्दी मिलेगी!
क्योंकि हर कोई आशंकित है एक दूसरे से,
अपने को अपना भी दुश्मन नजर आएगा कोरोना के रुप में ?
ऐसे समय में धैर्य, विवेक,ही अपना सहारा है,
ठहर जाओ,वहीं पर जहाँ जो ठिकाना है!
सरकारें हमें यों ही मरने नहीं देगीं,
भूखे को अनाज, व खाना, देने को तत्पर है!
बिमार हैं जो इस महामारी से,उन्हें उपचार को संकल्पित है!
इस जंग से जीता जा सकता है! सिर्फ तीन सप्ताह तक का ही तो आह्वान है!
आओ मिलकर इसे सफल बनाऐं,! इस बीमारी को यहाँ से भगाएं!!
जय हिन्द! जय भारत! में यह विश्वास जताएँ ,
भागे नहीं,बल्कि उसका दृढ़ता से सामना करके इसे दिखायें!!