बहुत बुरा है राष्ट्र का हाल
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बहुत बुरा है राष्ट्र का हाल।
जनता होने लगी कंगाल।।
नेता हो गए मालामाल।
नित ही चलें ये उलटी चाल।।
विवश है जनता जंगल राज।
मातम पसरा बज रहा साज।।
गीदड़ सर पे सज रहा ताज।
बीगड़ गये है सबके खाज।।
जनता मूक खड़ी है आज।
लगी है देखन उल्टे काज।।
ऊल्लू पहन के बैठा ताज।
करने लगा है सब पे राज।।
जन जन का यूँ बुरा है हाल।
नोच रहा अब गिद्ध है खाल।।
राजनीति की कुटिल है चाल।
आज राष्ट्र का हाल बेहाल।।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”