महाराणा प्रताप
शेर की तरह चिघांडता वह महाराणा प्रताप था
जिस शेर की दहाड़ से अकबर भी घबराता था
चेतक जिसकी सवारी थी ,इस मातृभूमि का वह लाल था
चेतक पर करता वह सवारी जो हवा से बातें करता था
अपनी मातृभूमि के खातिर उसने दुश्मनों को ललकारा था
जंगल में रहकर सूखी घास की रोटी खाकर
अपने जीवन को व्रज सा कठोर है किया
अपनी मातृभूमि पर ना दाग लगे
खुद को घावो से भर लिया
वह धन्य हो गई मातृभूमि जिसे ऐसा राणा प्रताप सपूत है मिला
वो धन्य हुआ मेवाड़ ,जिसका राजा राणा प्रताप हुआ
वह धन्य है आज मेवाड़ की धरा
जहां राणा प्रताप की वीरता मातृप्रेम, है बसा उस कण कण में उस हवा और पानी में
जब सुनू आज भी उस वीरगाथा को तो सीना फक्र से चौड़ा हुआ
मैं करता सत सत नमन ऐसे वीर राजा महाराणा प्रताप का!
** नीतू गुप्ता अलवर राजस्थान