महामारी पर चंद सवाल
इधर शव जल रहे थे
उधर भाषण चल रहे थे
महामारी पर चंद सवाल
आका को खल रहे थे
नया किला जीतने के
अरमान मचल रहे थे
ऑक्सीजन नहीं था
प्राण निकल रहे थे
टीका महोत्सव के
सुझाव चल रहे थे
श्मशान गुलज़ार थे
घर दहल रहे थे
साहब बेफिक्र थे
आंकड़े बदल रहे थे
क्या वे इंसान थे?
या राक्षस चल रहे थे?
अब मानवता अपना के
सब देश बचा ले।
#किसानपुत्री_शोभा_यादव