महामारी – एक संदेश
मैं जी रहा हूँ, या सिर्फ सांसे चल रही हैं?
ये सवाल पूछें, हर दिमाग अपने दिल से।
देख दुनिया के हालात, चारों तरफ है हाहाकार,
फैलीं है बीमारी नई – नई,
क्या हो रहा है, ये बात समझ नहीं आई?
ये हमारे कर्मों का फल है, या ऊपर वाले का प्रकोप,
दोनों मे ही लगता है, हमारा ही दोष।
कहते थे ज्ञानी, लगाओ पेड़, करो व्यायाम,
पालन करो संस्कारों का, परंपराओं को दो नए आयाम।
पर हमने कब है किसीकी सुनी, जो मन मे आया वहीं बात गुनी।
मैं जी रहा हूँ, या सिर्फ सांसे चल रही हैं?
ये सवाल पूछें, हर दिमाग अपने दिल से।
आज शायद सही सबक सिखाने के लिए, वक़्त आया है ऐसा,
सासों के लिए व्यायाम और स्वच्छता जरूरी है जितनी, शुद्ध हवा भी है क़ीमती उतनी।
उठो, जागो हो जाओ तैयार, करो सामना हर हालत का,
दिखा दो हममें है जज्बा, हर हार को जीत मे बदलने का।
दिल और दिमाग का हो संगम, और हर सवाल का हो तैयार जवाब,
लड़ेंगे, जीतेंगे और होंगे कामयाब।