महानगर
महानगर में
महानगर में
अंतहीन भीड़ थी
भागमभाग थी
स्वार्थपरता थी
भीड़ में भी था
एकाकीपन
व्यापार था
बाजार था
खरीददार था
मैट्रो ट्रेन थी
महँगी गाड़ियाँ थीं
फुटपाथ नापते
फटेहाल थे
सब कुछ था
परन्तु भाव नहीं था
स्नेह व लगाव नहीं था
-विनोद सिल्ला©