*महानगर (पाँच दोहे)*
महानगर (पाँच दोहे)
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(1)
ऊपर से सब ठीक है, अन्दर से है रोग
अपना घर-गाड़ी कहाँ, किस्तों पर सब लोग
(2)
ऊॅंचे वेतन के लिए, नाहक ही बदनाम
महानगर में सब गया, महँगाई के नाम
(3)
किस्तें भर-भर के हुआ, जिसका एक मकान
महानगर में वह बड़ा, भाग्यवान इन्सान
(4)
रहन-सहन ऊँचा हुआ, लेकिन क्षुद्र विचार
भाईचारे का गया, कलियुग में व्यवहार
(5)
लोग चतुर सब हो गए, लोग हुए चालाक
बातों में है फेर अब, बातें कब बेबाक
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451