महाझूठ के आधार वाला सच
एक ऐसा सच,
जिसका आधार ही महाझूठ,
कब हुआ फैसला,,दो लड़ने वालों में,
बदल बदल कर जीत जाते है,
बोल कर एकदम सफेद झूठ,
कुचले गये, निर्दोष बेचारे,
हर कोई,,अशोक महान् कब बना,
क्यों मरने मारने पर उतारू है लोग,
गहन शोध का विषय है,
कहाँ कोई पास हुआ,
पहचान बनी,, व्यवस्था के नाम पर,
इंसान सच मान बैठा,
बस यही भूल हुई,
कि जुर्म ए दास्तां बढती गई,
खोजे गये भूखे,,सम्मान समझ बैठे,
भूख बढी भूखे बढ़े, कैसे समां बंधे,
काम जिसे जो मिला, संतुष्ट नहीं,
अधिकार भूल,,कर्तव्य विमूढ़ हुआ,
महसूस कहाँ उन्हें, जो अपना कहते है,
ये तो आभास हमारा है,
जो फिर भी रहम और कर्म
अपने दिल में जिंदा रखते है !