महाकाव्य ‘वीर-गाथा’ का प्रथम खंड— ‘पृष्ठभूमि’
वीर-गाथा
नंदलाल सिंह ‘कांतिपति’
खंड-1
पृष्ठभूमि
वंदन भारत की मिट्टी को,
वंदन है वीर सपूतों को।
वंदन है उनके साहस को,
वंदन उनके बलबूतों को।।
जिनके शब्दों का सिंहनाद,
सुनकर दुश्मन थर्राते हैं।
जिनके संघर्षों की गाथा,
हो प्रफुल्ल देवता गाते हैं।।
बीसवीं सदी के ठीक पूर्व,
भारत का कष्ट भयंकर था।
अंग्रेजी शासन का स्वरूप,
अन्यायपूर्ण प्रलयंकर था।।
करती थी जनता त्राहिमाम,
अंग्रेजी अत्याचारों से।
आहत थी अपनी मातृभूमि,
कुछ घर के भी गद्दारों से।।
जो राम-कृष्ण के होकर भी,
बाबरी मशाल जलाते थे।
हिंदुस्तानी की खाल ओढ़,
अलगाववाद को गाते थे।।
अट्ठारह सौ सत्तावन का,
विद्रोह उभर कर आया था।
दारिद्र्य और परवशता का,
चहुॅंदिशि में मातम छाया था।।
बेबस जनता के सीने में,
अब धधक रहे अंगारे थे।
कुछ का तो लहु था उबल रहा,
कुछ बैठे मन को मारे थे।।
अपनी सत्ता पर खतरा है,
अंग्रेजों ने जब जान लिया।
कैसे अस्तित्व बचाना है,
तरकीब तुरत पहचान लिया।।
अब बीज क्रांति का उगे नहीं,
इस पर वे गहन विचार किए।
अपने से ही लड़ने खातिर,
अपनी टोली तैयार किए।।
सेवानिवृत्त कुछ गोरे थे,
सेवानिवृत्त कुछ काले थे।
अंग्रेजी सत्ता के दलाल,
कहने को लड़ने वाले थे।।
अट्ठारह सौ पच्चासी के,
दिसंबर में यह काम हुआ।
‘इंडियन नेशनल कांग्रेस’,
उस कुटिल सभा का नाम हुआ।।
इस दल के बल अंग्रेजों ने,
सत्ता अपनी महफूज़ किया।
भारत के वीर सपूतों को,
भारत-खिलाफ मिसयूज किया।
सर ए. ओ. ह्यूम प्रधान बना,
जो कभी ब्रिटिश अधिकारी था।
अंग्रेजी हित का संरक्षक,
भारत ख़ातिर अपकारी था।।
यह काल शोक-लज्जा का था,
जनता का शोषण जारी था।
अंग्रेजों का साम्राज्यवाद,
अपने भारत पर भारी था।।
हो गया कलंकित कालखंड,
औ मानवता का क्षरण हुआ।
ऐसे में महामानवों का,
शृंखलाबद्ध अवतरण हुआ।।
उनमें से ही है एक नाम,
युद्धक-नभ का ध्रुवतारा है।
अपने इस पोथी का नायक,
सावरकर वीर हमारा है।।
जो उग्र राष्ट्रवादी कवि था,
पर तनिक न कमतर लेखक था।
पहली जंगे-आजादी की,
घटनाओं का विश्लेषक था।।
जिसकी गतिविधियाॅं देख-देख,
इंग्लिश सत्ता बेचैन हुई।
वह प्रथम व्यक्ति, जिसकी पुस्तक,
छपने से पहले वैन हुई।।
जिसको पढ़ कर के भगत सिंह,
भारत माॅं पर कुर्बान हुए।
जिसकी राहों पर चल सुभाष,
नेताजी वीर महान हुए।।
जिसके शब्दों का सिंहनाद,
दासता-मुक्ति का मंत्र हुआ।
जिसके संघर्षों के दम पर,
भारत अपना स्वतंत्र हुआ।।
जिसके सम्मुख पत्थर दिल भी,
आकर के कोमलकांत हुए।
थे बड़े-बड़े तीसमार खाॅंव,
जब नजर मिली सब शांत हुए।।
वह क्रांतिवीर जो त्याग बुद्ध,
बस युद्ध राग को गाया था।
है विजयप्रदायिनी वीर नीति,
नवयुवकों को समझाया था।।
जो कलम और कट्टा लेकर,
अंग्रेजों का संहार किया।
इंग्लैंड-वास में रहते ही,
ब्रिटानी दल पर वार किया।।
जो ब्रिटिश राज के प्रति निष्ठा,
का शपथग्रहण ठुकराया था।
था सफल परीक्षा में फिर भी,
ला की उपाधि न पाया था।
जो बोला— टूट पड़ो अरि पर,
अपने भाई को डॅंसो नहीं।
तुम सत्य-अहिंसा, पंचशील,
औ विश्वशांति में फॅंसो नहीं।।
भागोगे अगर शांति पीछे,
काली बदली घिर जाएगी।
जब शक्ति भुजाओं में होगी,
तब शांति आप ही आएगी।।
मिट जाना ही यदि नीयति है,
यह काम अनूठा कर जाओ।
हथियार थाम लो हाथों में,
तुम मार शत्रु को मर जाओ।।
जो घोर अहिंसा के पोषक—
दुर्बल व कायर होते हैं।
हैं महावीर जो, दुश्मन के,
सीने में खंजर बोते हैं।।
जिसका कहना था सज्जन पर,
हम नहीं कभी प्रहार करें।
जो भारत को अपना समझे,
उसको हम अंगीकार करें।।
जो एक मराठा होकर भी,
हिंदी को अति सम्मान दिया।
यह ही हो भारत की भाषा,
इक अनुकरणीय प्रतिमान दिया।
जिसका कहना था हर हिंदू,
हिंदी को प्रथमतया सीखे।
भारत की हर भाषा को वह,
लिपि देवनागरी में लिखे।।
इससे हिंदी हर्षाएगी,
हिंदुस्तान हर्षाएगा।
हिंदी में हर हिंदू बच्चा,
गुणगान देश का गाएगा।।
भारत में व्याप्त रूढ़ियों पर,
जिसने जम कर के वार किया।
जो चतुर्वर्ण के ऊॅंच-नीच,
सिद्धांतों पर प्रहार किया।।
जिसका कहना था हिंदू सब,
इक-दूजै खातिर नेक बनें।
जो शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण,
सारे समान व एक बनें।।
भारत इक हिंदू राष्ट्र बने,
आजीवन जो संघर्ष किया।
जो घिर तमाम आरोपों से,
निर्मल होकर भी गरल पिया।।
आशावादी वह महापुरुष,
चेतनता को नव-धार दिया।
भारत माता की चरणों में,
सारा ही जीवन वार दिया।।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में,
जो प्रथम भारतीय पेश हुआ।
इंसाफ नहीं जब मिला उसे,
मन में इक भारी क्लेश हुआ।।
जिसको अंग्रेजों द्वारा दो,
आजीवन कारावास मिला।
था जहाॅं क्रूरतम परिवेश,
काला पानी का वास मिला।।
जब-जब दुनिया जाॅंबाज़ों की,
जीवन-गाथा को गाएगी।
अपने नायक का नाम सदा,
पहली श्रेणी में पाएगी।।
आहत होती है मातृभूमि,
गद्दारों और कपूतों से।
बनता है कोई राष्ट्र श्रेष्ठ,
अपने ही वीर-सपूतों से।।
लेकिन ये उन्हें खटकते थे,
गोरों ने जिनको पाला था।
है नस्ल हिंद का श्याम मगर,
उनका तो दिल भी काला था।।
वह कांग्रेसी कृतघ्न कुनबा,
सत्ता के मद में ऐंठ गया।
इन क्रांतिकारियों के शव को,
आसनी बनाकर बैठ गया।
कुछ को गुमनाम बना डाला,
कुछ को कलंक का ताप दिया।
भारत माता को खंडित कर,
सदियों तक का संताप दिया।।
आगे चल जिनने भारत को,
दादाजी की जागीर कहा।
हॉं, उन्हीं पालतू पिल्लों ने,
नायक को माफीवीर कहा।।
आगे के पन्नों में वर्णन,
उसके कर्मों का आएगा।
वह कायर था कि वीर पुरुष,
खुद का विवेक बतलाएगा।।
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