#महल का कंगुरा
#नमन मंच
#विषय महल का कंगुरा
#दिनांक २४/१०/२०२४
#विद्या कविता
लुभाती सबको
सौंदर्य महल की लालिमा,
ख्वाब था हमारा
बनकर कंगुरा शोहरत पाना !
मिला जब मैं
नींव के पत्थर से,
खड़ा जिस पर महल ये !
सुनकर दास्तां
उसके दर्द की कांप उठी रूह हमारी !
नहीं रही हसरत
दिखावे का कंगुरा बनने की,
तमन्ना है नींव का
हिस्सा बनकर पत्थर को राहत देने की !
स्वरचित मौलिक रचना
राधेश्याम खटीक
भीलवाड़ा राजस्थान