महबूब
स्वर्ग से आई इन्द्राणी है महबूब।
सर्वोपरि यह सुंदरी मेरी महबूब।।
चढ़ा अंग अंग प्यार रंग बदन में।
प्यार के नशे में ये मेरी महबूब।।
होती ना आँखों से औझल सूरत।
मोहिनी मूरत यह मेरी महबूब।।
अंग-अंग में खुशबू रही है महक,
यौवन से भरपूर ये मेरी महबूब।।
स्वयं पीलें होठों से जाम उसका,
शान पका तरबूज ये मेरी महबूब।।
नशीली आँखें पथ से बहकाती है,
नित जीवन गुरूर ये मेरी महबूब।।
पृथ्वीसिंह’ प्रेम का सागर बुंदिया,
सावण का श्रृंगार ये मेरी महबूब।।