महबूब मेरा आता नहीं
**महबूब मेरा आता नहीं (गजल)**
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***क़ाफ़िया:-ता रदीफ़:-नहीं
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महबूब मेरा क्यों यहाँ आता नहीं,
उसके बिना कुछ भी मुझे भाता नहीं।
हर रोज हो जाता खफ़ा बिन बात के,
वो साथ मेरे गीत कोई गाता नहीं।
किस रोग ने घेरा उसे ना जानती,
जो भी बुलाए पास वो जाता नहीं।
है चाँद मेरा यार रहती देखती,
हूँ चाँदनी दिलदार की पाता नहीं।
झट बादलों में खो गया महताब वो,
बदली कभी भी यार बरसाता नहीं।
प्यासी धरा सी मैं रही हूँ प्यार की,
है व्योम पृथ्वी सा जगत में नाता नहीं।
सारंग सी थी आस मनसीरत सदा,
पैगाम आने का यहाँ लाता नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)