#कुंडलिया//दूध का दूध पानी का पानी
नीचा-ऊँचा भूल के , समता का उल्लेख।
सूरज देता रोशनी , सम सबको ही देख।
सम सबको ही देख , बने ऐसा ही राजा।
मिटे मनो से भेद , वक़्त का यही तकाज़ा।
जुमले बाजी छोड़ , सत्य का खिला बगीचा।
डालो मत तुम फूट , कर्म विष सम ये नीचा।
सुनके सबकी बात जो , न्याय करे है नेक।
दही मथे ज्यों घी बने , उसकी ऐसी टेक।।
उसकी ऐसी टेक , चुने मिल ऐसा नेता।
सही कर्म नित झूम , खुशी मन को वो देता।
सुन प्रीतम की बात , वोट दें बढ़िया चुनके।
करके बुद्धि प्रयोग , वोट दो मन की सुनके।
वादे होंगे ख़ूब जी , सुनके पाओ चैन।
चाहत सौलह लाख की , भूल गए क्या नैन।
भूल गए क्या नैन , सफ़ेद हुआ धन काला।
खाता खाली यार , पड़ा अब भी है साला।
लोगों जागो आज , रहो ना सीधे-सादे।
देख धरातल रूप , निभा सकते क्या वादे।
#आर.एस. ‘प्रीतम’