महकेगी शाम
महकेगी शाम वक़्त वो तेरा भी आएगा
ख़ुशियाँ लिए तमाम, सवेरा भी आएगा
माना कि धूप तेज़ व रस्ते में ख़ार हैं
मंज़िल पे सायबान घनेरा भी आएगा
जलते दिये की लौ से बचेगा वो कब तलक
‘इस रौशनी की ज़द में अँधेरा भी आएगा’
आकर ज़रा चिराग़ तले देख लें हुज़ूर
‘इस रौशनी की ज़द में अँधेरा भी आएगा’
उनकी नज़र के जाम तो ग़ैरों के वास्ते
गो मयकशी में नाम ये मेरा भी आएगा
रखना ‘असीम’ याद मेरी बात ये सदा
रहबर की खाल में वो लुटेरा भी आएगा
– शैलेन्द्र ‘असीम’