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5 Apr 2022 · 1 min read

महंगाई का दौर

महंगाई के दौर में सस्ता
हुआ है खून का रिश्ता।
दौलत रिश्ते का आधार
बाकी सब हो गए बेकार।

एक चुटकी सिंदूर रहा है
जीवन भर का साथ।
मांग वही, सिंदूर वही अब
बदले चुटकी वाला हाथ।

पैसों की हर तरफ लड़ाई
मात पिता न बहना भाई।
वृद्धों का अब कहीं न ठौर
वृद्धाश्रम का चला है दौर।

नैतिकता अब बहुत ही महंगी,
मर्यादा की सीमा सस्ती।
मानवता का लोप हो रहा,
दानवता हो गई है मस्ती।

महंगा हुआ है अब तो राशन
बहुत ही सस्ता है आश्वासन।
लुट जाती है अब वो शक्ति
जिसकी हम सब करते भक्ति।

चीर हरण करते निज मां का,
पनप रहे ऐसे दुर्योधन।
भारत माता किसे पुकारे,
मां से श्रेष्ठ हुआ है धन।

संस्कृति को भूल रहे हम
परंपराएं तोड़ रही दम।
जाने कब होगा परिवर्तन
दिखे तो कोई एक किरण।

भागीरथ प्रसाद

Language: Hindi
1 Like · 168 Views
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