महँगाई
लोग कहते हैं कि महँगाई आ गई
टमाटर सौ रुपये
और
प्याज एक सौ बीस पर आ गई
क्या खायेंगे
हम कहते हैं कि
आप भी जम के खाइए
जैसे हम खा रहे हैं
विश्व बैंक की महिमा के गुण गा रहे हैं
ऋण तो अपनी सम्पत्ति है
इसे लेने में क्या आपत्ति है
जब जी चाहा ले लिया
देना थोड़े ही है
आप भी मेरी मानिए
अपने पड़ोसी से उधार लेते रहिए
और बदले में
उसे लौटाने का आश्वासन देते रहिए
बिगड़े काम बन जाएंगे
यदि आप उधार लेने पर ठन जाएंगे
अरे साहब!
आप हँस रहे हैं
बेकार में फँस रहे हैं
कोई देखेगा तो कहेगा कि शेखी बघार रहे हैं
अपनी लाइन वाली महिला को लाइन मार रहे हैं
अरे भाई!
महफिल में बेवजह हँसना छोड़िए
आइए
मंच पर आकर
हम कवियों की तरह
दो-चार गीत बोलिए
लोगों के दिलो-दिमाग में प्रीत घोलिए
अगर यह भी नहीं कर सकते
तो अपने ही समाज के लोगों को गालियाँ दीजिए
चौराहे पर खड़े होकर
कैम्पा कोला की शीशी में सोमरस पीजिए
फिर खाने के लिए
आपको सोचना नहीं पड़ेगा
कुर्ता-पैजामा पहनकर आप नेता बन जाएंगे
और
धीरे-धीरे पूरा देश खा जाएंगे।
✍🏻 शैलेन्द्र ‘असीम’